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Father Of The Atomic Bomb:-भगवद गीता पढ़ने वाले ने कैसे बनाया दुनिया का सबसे खतरनाक हथियार? जानिए पूरी कहानी

Father Of The Atomic Bomb:- जे. रॉबर्ट ओप्पेनहाइमर: ‘परमाणु बम’ के जनक

जे. रॉबर्ट ओप्पेनहाइमर को ‘परमाणु बम का जनक’ कहा जाता है। उन्होंने अमेरिका के ‘मैनहैटन प्रोजेक्ट’ का नेतृत्व किया, जिसके तहत 16 जुलाई 1945 को न्यू मैक्सिको में पहला परमाणु बम परीक्षण ‘ट्रिनिटी टेस्ट’ सफलतापूर्वक किया गया।

1958. American physicist J. Robert OPPENHEIMER.

भगवद गीता से प्रेरणा

ओप्पेनहाइमर भारतीय दर्शन और भगवद गीता में गहरी रुचि रखते थे। उन्होंने 1933 में संस्कृत सीखी और गीता को मूल रूप में पढ़ा। उनका मानना था कि गीता “अब तक की सबसे सुंदर दार्शनिक कविता” है। उन्होंने गीता की शिक्षाओं को अपने वैज्ञानिक और नैतिक निर्णयों में मार्गदर्शक माना।


‘अब मैं मृत्यु बन गया हूँ, संसारों का संहारक’

जब ओप्पेनहाइमर ने ट्रिनिटी टेस्ट के दौरान परमाणु विस्फोट देखा, तो उन्हें भगवद गीता का एक श्लोक याद आया:

“कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः”
(“अब मैं मृत्यु बन गया हूँ, संसारों का संहारक”)

यह श्लोक भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित करने के संदर्भ में है, जिसमें वे अपने रूप का दर्शन कराते हैं और समय के रूप में स्वयं को प्रकट करते हैं।


युद्ध के बाद पछतावा

हिरोशिमा और नागासाकी पर बम गिराए जाने के बाद, ओप्पेनहाइमर ने अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन से मुलाकात की और कहा, “मेरे हाथों पर खून है।” उन्होंने परमाणु हथियारों के उपयोग पर गहरा पछतावा व्यक्त किया और इसके खिलाफ आवाज उठाई।


ओप्पेनहाइमर का जीवन परिचय

विवरणजानकारी
जन्म22 अप्रैल 1904, न्यूयॉर्क, अमेरिका
शिक्षाहार्वर्ड, कैंब्रिज, गॉटिंगन
प्रमुख भूमिकामैनहैटन प्रोजेक्ट के वैज्ञानिक निदेशक
प्रमुख उपलब्धिपहला परमाणु बम परीक्षण (ट्रिनिटी टेस्ट)
मृत्यु18 फरवरी 1967, गले के कैंसर से

ओप्पेनहाइमर एक ऐसे वैज्ञानिक थे जिन्होंने विज्ञान और दर्शन दोनों में गहरी समझ रखी। भगवद गीता से प्रेरित होकर उन्होंने अपने कर्तव्यों का पालन किया, लेकिन परमाणु बम के विनाशकारी परिणामों ने उन्हें जीवन भर आत्ममंथन करने पर मजबूर किया। उनकी कहानी हमें विज्ञान की शक्ति और नैतिक जिम्मेदारियों के बीच संतुलन की आवश्यकता का एहसास कराती है।

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