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SC:-“SC का साफ निर्देश: ‘गंभीर अपराधों में बेल मत दें मशीन की तरह’, हाई कोर्ट फैसलों पर कड़ी आपत्ति”

SC:-1. क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने
- सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ (न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, संजय करोल, संदीप मेहता) ने स्पष्ट कहा कि गंभीर अपराधों में अग्रिम जमानत को ‘मशीनी’ तरीके से नहीं देना चाहिए ।
- अदालत ने पटना हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें बिना पूरी जांच के चार आरोपितों को अग्रिम जमानत दी गई थी ।
2. पटना हाई कोर्ट के आदेश में क्या कमी थी
- आदेश में IPC धारा 302 (हत्या) और 307 (हत्या की कोशिश) जैसे गंभीर अपराधों में कोई ठोस न्यायिक विश्लेषण नहीं था ।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वे “संक्षिप्त और बिना तर्क” की गई रिहाई के कारण इसे “क्रिप्टिक और मैकेनिकल” (गूढ़ और मशीन जैसी) बताते हैं ।
3. केस की पृष्ठभूमि (फ़ैक्ट्स)
- 2023 में एक व्यक्ति का लोहे की रॉड और डंडों से हमला हो गया, जिससे उसकी मौके पर मौत हो गई।
- पीड़ित के बेटे ने आरोपितों के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज करवाई और अग्रिम जमानत के फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
4. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ
- अदालत ने कहा कि आरोपी तब भी हमला करते रहे जब पीड़ित ज़मीन पर गिर चुका था—इससे अपराध की गंभीरता सिद्ध होती है।
- हाई कोर्ट ने आरोपों की गंभीरता और अपराध की प्रकृति नहीं समझी, इसीलिए उसका आदेश रद्द होना चाहिए।
5. अगली कार्रवाई
- आरोपितों को 8 हफ़्ते के अंदर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया गया है।
- उसके बाद, ट्रायल कोर्ट उनके खिलाफ ज़मानत की केसबाई केस जांच करेगी।
SC:-मामला सारिणी (टॉप 5 पॉइंट्स)
महत्वपूर्ण बिंदु | विवरण |
---|---|
बींच | जस्टिस विक्रम नाथ, संजय करोल, संदीप मेहता |
अपराध की धाराएँ | IPC §302 (हत्या), §307 (हत्या की कोशिश) |
हाई कोर्ट का फ़ैसला | अटके आरोपों में जल्दी अग्रिम जमानत, बिना तर्क |
सुप्रीम कोर्ट ने कहा | “क्रिप्टिक एवं मशीन जैसी लॉकडॉउन” |
अगला कदम | 8 हफ़्ते में आत्मसमर्पण, फिर ट्रायल कोर्ट में याचिका |
SC:-न्यायिक विवेक की ज़रूरत: सुप्रीम कोर्ट ने ज़ोर देकर कहा कि बेल पर निर्णय करते समय केवल औपचारिक प्रक्रियाओं का पालन नहीं, बल्कि अपराध की गंभीरता, आरोपी की भूमिका, साक्ष्यों को गहराई से जांचना चाहिए ।
- नया पैटर्न: ‘क्रिप्टिक और मैकेनिकल’ आदेश देने का रुख अब सुप्रीम कोर्ट बर्दाश्त नहीं करेगी।
- आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार: यह फैसला कानून और अपराध न्यायशृंखला में विवेकपूर्ण जांच की दिशा का संकेत देता है।