Rajim Kumbh Kalpa:- 12 वर्षीय देवागिरी महाराज: राजिम कुंभ में सबसे युवा नागा साधु बने आकर्षण का केंद्र

Rajim Kumbh Kalpa:- राजिम कुंभ कल्प में विभिन्न क्षेत्रों से आए नागा साधुओं के बीच, 12 वर्षीय देवागिरी महाराज विशेष आकर्षण का केंद्र बने हैं। नरसिंहपुर जिले के कक्षा छठवीं तक शिक्षित देवागिरी ने धर्म की रक्षा और ईश्वर प्राप्ति के लिए नागा साधु बनने का संकल्प लिया है। जूना अखाड़ा के 13 मणि जगरामा परिवार में शामिल हुए देवागिरी अभी प्रारंभिक चरण में हैं और कुछ वर्षों की कठिन साधना और परीक्षा के बाद पूर्ण नागा साधु के रूप में दीक्षित होंगे।
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मुख्य समाचार:
राजिम कुंभ कल्प में इस वर्ष विभिन्न क्षेत्रों से आए नागा साधुओं के बीच एक 12 वर्षीय बालक, देवागिरी महाराज, श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। नरसिंहपुर जिले के निवासी देवागिरी ने कक्षा छठवीं तक शिक्षा प्राप्त की है और अब उन्होंने धर्म की रक्षा और ईश्वर प्राप्ति के उद्देश्य से नागा साधु बनने का निर्णय लिया है।

देवागिरी महाराज जूना अखाड़ा के 13 मणि जगरामा परिवार में शामिल हुए हैं। वर्तमान में वे प्रारंभिक चरण में हैं और पूर्ण नागा साधु बनने के लिए उन्हें कुछ वर्षों की कठिन साधना और परीक्षाओं से गुजरना होगा। सफलतापूर्वक इन चरणों को पूर्ण करने के बाद ही उन्हें विधिवत नागा पद्धति से दीक्षित किया जाएगा।
कुंभ मेले में उपस्थित लोगों के बीच यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि इतनी कम उम्र में देवागिरी महाराज नागा साधुओं के कठोर नियमों और साधना का पालन कैसे करेंगे। नागा साधु बनने की प्रक्रिया अत्यंत कठिन होती है, जिसमें पहले अखाड़े में सेवा करनी पड़ती है। इस दौरान अखाड़ा आवेदक के इतिहास और पारिवारिक पृष्ठभूमि की जांच करता है। आवेदक का गृहस्थ जीवन से कोई संबंध नहीं होना चाहिए। इसके बाद, किसी कुंभ मेले में दीक्षा दी जाती है, जिसमें दीक्षा लेने वालों को पिंडदान करना होता है। दीक्षा प्रक्रिया के पश्चात, नए नाम के साथ अखाड़े में प्रवेश मिलता है।

नागा साधु बनने की प्रक्रिया:
चरण | विवरण |
---|---|
सेवा अवधि | अखाड़े में सेवा, आवेदक के इतिहास और पारिवारिक पृष्ठभूमि की जांच |
गृहस्थ जीवन से विरक्ति | आवेदक का गृहस्थ आश्रम से कोई संबंध नहीं होना चाहिए |
दीक्षा समारोह | कुंभ मेले में पिंडदान और दीक्षा |
अखाड़े में प्रवेश | नए नाम के साथ अखाड़े में सम्मिलन |
देवागिरी महाराज की इस यात्रा ने न केवल श्रद्धालुओं बल्कि साधु-संतों के बीच भी उत्सुकता और प्रेरणा का संचार किया है। उनकी दृढ़ संकल्पना और समर्पण आने वाले समय में धर्म और समाज के लिए एक मिसाल स्थापित करेंगे।