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NEW DELHI:-रेलवे का नया जुगाड़: ट्रक से बनी ट्रेन, देखें वीडियो

NEW DELHI:-भारतीय रेलवे ने माल ढुलाई में सुधार के लिए ‘रो-रो सेवा’ (रोल ऑन-रोल ऑफ) को अपनाया है, जिसमें ट्रकों को रेलवे वैगनों पर लादकर गंतव्य तक पहुंचाया जाता है। यह एक स्मार्ट कदम है जो सड़क और रेल परिवहन के फायदे को जोड़ता है। इससे डीजल की खपत और कार्बन उत्सर्जन कम होता है, साथ ही ट्रांसपोर्ट की लागत भी घटती है।


क्या है ‘रो-रो सेवा’?

पहलूविवरण
परिवहन का तरीकाट्रकों को रेलवे वैगनों पर लादकर गंतव्य तक पहुंचाना।
शुरुआत1999 में कोंकण रेलवे द्वारा।
लाभडीजल बचत, प्रदूषण में कमी, परिवहन में समय की बचत।
चुनौतियाँट्रक की लोडिंग समस्याएं, ऊंचाई सीमा और नेटवर्क क्षमता।

देखें वीडियो:-


लाभ:

  1. पर्यावरण संरक्षण: ट्रक परिवहन की तुलना में रेल परिवहन से कम कार्बन उत्सर्जन।
  2. समय और ईंधन की बचत: लंबी दूरी के लिए ट्रकों का उपयोग कम।
  3. लागत में कमी: ट्रकों के रखरखाव और डीजल खर्च की बचत।

चुनौतियाँ:

  1. ट्रक और वैगन का समायोजन: ट्रक लोडिंग में समस्याएं और वैगन की कमी।
  2. टैरिफ निर्धारण: रेलवे की लागत और ट्रक ऑपरेटरों के लाभ में तालमेल की कमी।
  3. प्रवेश मार्ग और टर्मिनल सुविधाएँ: ट्रक फ्लो को संभालने के लिए अपर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर।

कैसे सुधरेगी रो-रो सेवा?

  • सर्वेक्षण और योजना: बेहतर मांग और क्षमता का आकलन।
  • बेहतर वैगन: ट्रकों की आसान लोडिंग के लिए मजबूत और समतल वैगन।
  • प्रतिस्पर्धी टैरिफ: ट्रक ऑपरेटर्स के लिए किफायती दर।
  • विश्वसनीयता में सुधार: समय पर डिलीवरी और ग्राहकों का विश्वास बढ़ाना।

रोचक तथ्य

  • डीजल खपत: 10% तक बचत।
  • प्रारंभिक सफलता: कोंकण रेलवे पर रो-रो सेवा ने अच्छा राजस्व कमाया।
  • सैन्य उपयोग: इस सेवा से सेना के टैंक और अन्य वाहनों का परिवहन भी किया गया।

संभावित समाधान:

चुनौतीसमाधान
ट्रक-वैगन समायोजनमजबूत और सपाट वैगन की तैनाती।
टैरिफ निर्धारणदूरी-आधारित और स्थिर टैरिफ।
इंफ्रास्ट्रक्चर समस्याएप्रोच रोड और टर्मिनल सुविधाओं का सुधार।

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