Kumbh Mela:-कुंभ मेला: क्यों हर 12 साल में होता है आयोजन? क्या है इसका महत्व?
Kumbh Mela:-कुंभ मेला दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक है। यह सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और आध्यात्मिक जागृति का प्रतीक है। कुंभ मेला भारत की पवित्र नदियों – गंगा (हरिद्वार और प्रयागराज), गोदावरी (नासिक), और शिप्रा (उज्जैन) से जुड़ा है। हर 12 साल में इन स्थानों पर महाकुंभ का आयोजन होता है। आइए जानते हैं कि कुंभ मेला सिर्फ 12 साल में ही क्यों होता है और इसका महत्व क्या है।
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कुंभ मेला 12 साल में ही क्यों होता है?
कुंभ मेला ज्योतिषीय गणना पर आधारित है। इसका आयोजन बृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा की खास स्थिति के आधार पर किया जाता है, जिसे आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण माना गया है।
ग्रह | स्थिति | महत्व |
---|---|---|
बृहस्पति | कुंभ राशि में | आध्यात्मिक जागृति |
सूर्य | मकर राशि में | शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक |
चंद्रमा | खास स्थिति में | मन की शुद्धि |
यह माना जाता है कि इन ज्योतिषीय संयोगों के दौरान पवित्र नदियों में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कुंभ मेले का पौराणिक महत्व
कुंभ मेले की कहानी समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया। जब अमृत से भरा कुंभ निकला, तो इसे लेकर संघर्ष हुआ। इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें धरती पर चार स्थानों पर गिरीं:
- प्रयागराज
- हरिद्वार
- उज्जैन
- नासिक
तब से इन स्थानों को पवित्र माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि कुंभ मेले के दौरान इन नदियों में स्नान करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक शुद्धि मिलती है।
प्रयागराज का महाकुंभ 2025: महत्वपूर्ण तिथियां
महाकुंभ 2025 ग्रहों की स्थिति के अनुसार आयोजित होगा। इसकी प्रमुख तिथियां इस प्रकार हैं:
तिथि | पर्व | स्नान |
---|---|---|
13 जनवरी 2025 | पौष पूर्णिमा | पहला स्नान |
14 फरवरी 2025 | माघी पूर्णिमा | विशेष स्नान |
26 फरवरी 2025 | महाशिवरात्रि | अंतिम स्नान |
महाकुंभ का समापन: 26 फरवरी 2025, महाशिवरात्रि के दिन अंतिम स्नान के साथ होगा।
कुंभ मेले का अनुभव
कुंभ मेले में लाखों श्रद्धालु पवित्र स्नान, धार्मिक प्रवचन और साधु-संतों के दर्शन के लिए जुटते हैं। यह धार्मिक आस्था और सामाजिक समरसता का अनूठा उदाहरण है।