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Kannada Language Controversy:-एटीएम में कन्नड़ भाषा न होने पर विवाद, स्थानीय लोगों में नाराज़गी

Kannada Language Controversy:-

  • बेंगलुरु के नेशनल लॉ स्कूल परिसर के पास स्थित यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के एटीएम में कन्नड़ भाषा का विकल्प नहीं होने पर एक स्थानीय व्यक्ति ने सोशल मीडिया पर नाराज़गी जताई।
  • एटीएम में ‘अपनी भाषा चुनें’ विकल्प में केवल हिंदी और अंग्रेज़ी उपलब्ध थीं, जिससे स्थानीय भाषा कन्नड़ की अनदेखी हुई।
  • इस मुद्दे ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी, जहां कुछ लोगों ने इसे स्थानीय संस्कृति का अनादर बताया, जबकि अन्य ने इसे अनावश्यक विवाद कहा।

विवाद का विस्तार:

कर्नाटक में कन्नड़ भाषा और संस्कृति को लेकर संवेदनशीलता बढ़ती जा रही है। हाल ही में, एक व्यक्ति ने बेंगलुरु के यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के एटीएम में कन्नड़ भाषा का विकल्प न होने पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर अपनी नाराज़गी व्यक्त की। उन्होंने लिखा, “जब ‘अपनी भाषा चुनें’ विकल्प आता है, तो केवल हिंदी और अंग्रेज़ी दिखाई देती हैं। कन्नड़ का कोई नामोनिशान नहीं है।”

इस पोस्ट के बाद, कई लोगों ने इस मुद्दे पर अपनी राय दी। कुछ ने इसे स्थानीय भाषा और संस्कृति के प्रति असंवेदनशीलता बताया, जबकि अन्य ने कहा कि सेवा की उपलब्धता अधिक महत्वपूर्ण है, भाषा नहीं।


Kannada Language Controversy:-भाषा विवाद के अन्य उदाहरण:

यह पहली बार नहीं है जब कर्नाटक में भाषा को लेकर विवाद हुआ हो। हाल ही में, एक एसबीआई शाखा प्रबंधक ने ग्राहक से कन्नड़ में बात करने से इनकार कर दिया, जिसके बाद उन्हें स्थानांतरित कर दिया गया। इस घटना के बाद, कर्नाटक रक्षण वेदिके (KRV) जैसे संगठनों ने बैंकों और अन्य संस्थानों में कन्नड़ भाषा के उपयोग की मांग को लेकर प्रदर्शन किए।


Kannada Language Controversy:-सरकारी प्रतिक्रिया:

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस मुद्दे पर कहा कि राज्य में रहने वाले सभी लोगों को कन्नड़ भाषा का सम्मान करना चाहिए और इसे सीखने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने बैंकों और अन्य सार्वजनिक सेवाओं में कन्नड़ भाषा के उपयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर जोर दिया।


बेंगलुरु जैसे बहुभाषी शहर में, जहां विभिन्न भाषाओं के लोग रहते हैं, वहां स्थानीय भाषा कन्नड़ के प्रति सम्मान और उसका उपयोग सुनिश्चित करना आवश्यक है। बैंकों और अन्य सार्वजनिक सेवाओं में कन्नड़ भाषा के विकल्प की उपलब्धता से न केवल स्थानीय लोगों की सुविधा बढ़ेगी, बल्कि यह राज्य की सांस्कृतिक पहचान को भी मजबूत करेगा।

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