Mental Hospital Inspection:-सरकारी मानसिक अस्पताल सेंदरी की दुर्दशा, हाईकोर्ट ने मांगा जवाब, सुधार के निर्देश भी हवा में!

Mental Hospital Inspection:-छत्तीसगढ़ के सेंदरी में स्थित राज्य के एकमात्र मानसिक अस्पताल की बदहाली को लेकर हाई कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट कमिश्नर द्वारा अस्पताल निरीक्षण के दौरान कई गंभीर खामियां सामने आईं, जिसके बाद स्वास्थ्य सचिव से जवाब मांगा गया है।
यह मामला तब सामने आया जब मीडिया में अस्पताल की अव्यवस्थाओं को लेकर खबरें छपीं। अस्पताल प्रशासन ने इन खबरों को निराधार बताते हुए खारिज कर दिया, लेकिन हाई कोर्ट ने इसे गंभीरता से लिया और जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान कोर्ट कमिश्नर से रिपोर्ट मांगी।
कोर्ट कमिश्नर ऋषि राहुल सोनी ने बताया कि निरीक्षण के दौरान अस्पताल की स्थिति बेहद चिंताजनक पाई गई। डॉक्टर और स्टाफ अपनी ड्यूटी के तय समय (सुबह 8 से दोपहर 2 बजे) के बजाय केवल एक से डेढ़ घंटे तक ही अस्पताल में रहते हैं। यह बात उपस्थिति रजिस्टर और सीसीटीवी फुटेज से भी साबित हुई। इसके अलावा अस्पताल में साफ-सफाई की व्यवस्था खराब पाई गई और वॉटर कूलर भी खराब हालत में मिला।
कोर्ट कमिश्नर की रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि अस्पताल में डॉक्टरों की संख्या भी निर्धारित सेटअप के हिसाब से काफी कम है। इस पर राज्य के महाधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि सरकार इस दिशा में गंभीर है और नई नियुक्तियों के लिए विज्ञापन जारी कर दिए गए हैं।
Mental Hospital Inspection:-हालांकि, अस्पताल के अधीक्षक ने 17 अप्रैल 2025 को प्रकाशित खबर को खारिज करते हुए कहा था कि यह पूरी तरह निराधार है और स्टाफ अपनी ड्यूटी पूरी तरह से निभा रहा है। उन्होंने दावा किया कि मरीजों को पर्याप्त सुरक्षा और दवाइयां मिल रही हैं, साथ ही फार्मासिस्ट की भी कोई कमी नहीं है।
इस पूरे मामले को लेकर कोर्ट ने नाराजगी जताई है। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा ने कहा कि जब कोर्ट खुद निगरानी कर रहा है, तो फिर भी सुधार क्यों नहीं हो रहा? उन्होंने सरकार से जवाबदेही तय करने को कहा और अगली सुनवाई के लिए 16 जुलाई 2025 की तारीख तय की। साथ ही स्वास्थ्य सचिव को कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से जवाब देने के निर्देश भी दिए हैं।
Mental Hospital Inspection:-इससे पहले सचिव और निदेशक स्वास्थ्य सेवाएं ने 1 अप्रैल और 8 अप्रैल को सेंदरी अस्पताल का निरीक्षण कर रिपोर्ट प्रस्तुत की थी और सुधारात्मक कदम उठाने के निर्देश दिए थे। लेकिन अदालत का कहना है कि सुधार केवल कागजों पर नजर आ रहा है, जमीनी हकीकत अब भी वही है।
मानसिक स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील विषय में यह लापरवाही गंभीर चिंता का विषय बन चुकी है, और अब देखना होगा कि आगामी सुनवाई में राज्य सरकार क्या ठोस कदम उठाती है।